Sunday, April 5, 2009

यशवंत का नया इमोशनल अत्याचार

जसवंत की किसी भी बात पर फेथ करने वाला हर एक आदमी ने हमेशा धोखा खाया है. इस समय बो एचटी मीडिया के मुकदमे वाले मामले में एक और इमोशनल अत्याचार में लगे है. मुकदमा की कहानी bhadas4media पर सुनाकर पैसा कबाड़ने को सोचा है. मीडिया वाले भी कोई कम चालाक थोड़े ही है. जो जानता है, कोई फूटी सी कौड़ा भी नहीं देने वाला है. दिल्ली वाले अच्छी तरह से समझ चुका हैं कि कितना बड़ा खेल है. पत्रकार राजीव रंजन नाग ने पहले दिन ही जाना बूझा तो रास्ता बदल लिया है. बो अब उन बेचारे को भी आंख देखा रहे है. कह रहे....... गोली दे गए. वे 2 अप्रैल को कोर्ट नहीं आए। सोचा, दिल्ली वाले ऐसे ही होते हैं क्या!



संघर्ष का जुमला पढ़ो. वह चंदे का पैसा कबाड़ने को लछ्छेदार है.......
संघर्ष है तो मुकदमा है। मुकदमा है तो फैसला है। फैसला है तो हार है या फिर जीत है। हार है तो हिम्मत है। हिम्मत है तो उम्मीद है। उम्मीद है तो रास्ते हैं। रास्ते हैं तो मंजिल है। मंजिल है तो देर सबेर मिलेगी ही. कोर्ट परिसर के बाहर हाईकोर्ट का दर्शन करना और अनुभव हासिल करना बेजोड़ रहा। कचहरी को लेकर हम जैसे पढ़े-लिखे लोगों के अंदर खामखा का भ्रम और डर बना रहता है। ये तो बड़ी प्यारी चीज होती है।
अब उनका इमोशनल अत्याचार पढ़ो .......
एचटी मीडिया और प्रमोद जोशी द्वारा भड़ास4मीडिया पर मुकदमा न सिर्फ पहला मौका है बल्कि इस मुकदमें को सिर्फ भड़ास4मीडिया पर हुआ मुकदमा नहीं मानता। मैं इसे देश के सभी संवेदनशील, सचेतन व लोकतांत्रिक लोगों का मुकदमा मानता हूं. बात यहां पैसों की भी नहीं है। यह मुकदमा पैसों का नहीं है बल्कि परंपरागत मीडिया बनाम न्यू मीडिया के एप्रोच का है। इस जंग में हम न्यू मीडिया के प्रतिनिधि लोग अपने साथ केवल साहस और विजन रखते हैं। हमारे पास न तो पैसा है और न ही कहीं से मिला कोई फंड। हमें इसके लिए आप पर निर्भर रहना है। और इसलिए भी निर्भर रहना है क्योंकि हमें साबित करना है कि हम एकजुट हैं. लोग मिल-जुलकर इस भार को बांट लें। इस मुकदमें को लेकर दोस्त-मित्र की भी शिनाख्त करनी है। इस मुकदमें को लड़ने के लिए प्रतीकात्मक तौर पर हम लोगों की आर्थिक मदद करें, न्यूनतम दस रुपये से लेकर अधिकतम 101 रुपये तक की। इससे ज्यादा नहीं चाहिए। हमें यह राशि मांगने, मदद मांगने में कोई शर्म नहीं है. अपनी जेब से एक पैसा भी खर्च करना पड़ा, मैं मुकदमा लड़ने और न लड़ने के बारे में सोचूंगा.
देखो बो सारे मीडिया घरानों को कैसे निशाना लगाते है.....
जिस किसी पत्रकार साथी ने किसी मीडिया हाउस के खिलाफ कोई मुकदमा लड़ा हो और जीता हो, वे अपने अनुभव, कोर्ट केस के डिटेल, अपनी तस्वीर हमारे पास भेजें। भड़ास4मीडिया पर एक नई सीरीज शुरू करने की योजना है जिसमें मीडिया मामलों में कोर्ट केस जीतने वाले पत्रकारों के मुकदमों के डिटेल प्रकाशित किए जाएंगे ताकि बाकी पत्रकार साथी सबक ले सकें . ये नायाब सुझाव एक ऐसे वरिष्ठ पत्रकार ने दिया है जो इन दिनों एक बड़े ग्रुप पर केस करने के बाद लगभग जीतने की स्थिति में पहुंच चुके हैं।