Wednesday, March 4, 2009

शमशेर बहादुर की प्रेयसी


तुम मेरी पहली प्रेमिका हो
जो आईने की तरह साफ
बदन के माध्यम से ही बात करती हो
और शायद (शायद)
मेरी बात साफ-साफ
समझती भी हो.
प्यारी,
तुम कितनी प्यारी हो!
वह कांसे का चिकना बदन
हवा में हिल रहा है
हवा हौले-हौले नाच रही है,
इसलिए........
तुम भी मेरी आंखों में
(स्थिर रूप में साकार रहते हुए भी)
हौले-हौले अनजाने रूप में
नाच रही हो
हौले-हौले
हौले-हौले यह कायनात हिल रही है
...................
गंदुमी गुलाब की पांखुड़ियां
खुली हुई हैं
आंखों की शबनम
दूर
चारों तरफ हंस रही है
यह मीठी हंसी
तुम्हारा सुडौल बदन
एक आबशार (जल प्रपात) है
जिसे मैं
एक ही जगह खड़े देखता हूं
ऐसा चिकना और गतिमान
ऐसा मूर्त सुंदर उज्ज्वल
...........
यह पूरा
कोमल कांसे में ढला
गोलाइयों का आईना
मेरे सीने से कसकर भी आजाद है
जैसे किसी खुले बाग में
सुबह की
सादा भीनी-भीनी हवा
यह तुम्हारा ठोस बदन
अजब तरीके से मेरे अंदर बस गया है.

4 comments:

  1. शमशेर बहादुर सिंह कवियों के कवि कहे जाते थे. महाकवि निराला उनके आदर्श रहे. उनके लिखने, सोचने का एक अलग ढंग था. उनको पढ़ने का एक अलग मजा है. प्रेम भी उनका अलग तरह का है. पढ़ते-पढ़ते मना कहां-कहां घूम-झूम आता है. प्रेयसी कविता पढ़ कर भी ऐसा ही मन को लगा. आनंद आ गया.

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर रचना .....कुछ अर्थों को समेंटे हुए

    ReplyDelete
  3. कविता अच्छी लगी आपकी ! शब्दों व् भावों का सुन्दर संयोजन है !
    लेकिन कभी कभी लगा की डिस्क्रिप्शन में आप थोडा ज्यादा सब्जेक्टिव हो गए है ! ,
    अपना अपना नजरिया है , और क्या !

    ReplyDelete
  4. तसवीर ऊपर बहुत अच्छी लगायी है !

    ReplyDelete