Thursday, March 5, 2009

फिर भी है वह अनुपम सुंदर.

द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूं प्यार.
रूप नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूं प्यार.
सांसारिक व्यवहार, न ज्ञान
फिर भी मैं करता हूं प्यार.
शक्ति, न यौवन पर अभिमान
फिर भी मैं करता हूं प्यार.
कुशल कलाविद हूं, न प्रवीण
फिर भी मैं करता हूं प्यार.
केवल भावुक, दीन, मलीन

फिर भी मैं करता हूं प्यार.

मैंने कितने किए उपाय
किंतु न मुझसे छूटा प्रेम.
सब विधि था जीवन असहाय
किंतु न मुझसे छूटा प्रेम.
सब कुछ साधा जप-तप-मौन
किंतु न मुझसे छूटा प्रेम.
कितना घूमा देश-विदेश
किंतु न मुझसे छूटा प्रेम.
तरह-तरह के बदले वेश
किंतु न मुझसे छूटा प्रेम.

उसकी बात में छल है
फिर भी है वह अनुपम सुंदर.
माया ही उसका संबल है
फिर भी है वह अनुपम सुंदर.
वह वियोग का बादल मेरा
फिर भी है वह अनुपम सुंदर.
छाया जीवन आकुल मेरा
फिर भी है वह अनुपम सुंदर.
केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी
फिर भी है वह अनुपम सुंदर.
वह अंतिम भय-सी, विस्मय-सी
फिर भी है वह अनुपम सुंदर.

5 comments:

  1. मैंने कितने किए उपाय
    किंतु न मुझसे छूटा प्रेम.
    ..बहुत सुंदर.

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  2. बेहतरीन लिखा है. कृपया लिखना जारी रखें.
    शुभकामनाएँ

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  3. किन्तु मुझसे ना छूटा प्रेम ...वाह बहुत खूब

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  4. बहुत सुंदर लिखा है...

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