Sunday, March 1, 2009

मां का आंचल

तपते मरु में, राहत देती माँ बरगद-सी छांव है.
दया-से उफनते जीवन में पार लगाती नाव हैं.
बेटा-बेटी के होने पर नारी माँ का दर्जा पा जाती.
फिर सारे जीवन भर उन पर ममता-रस बरसाती.
घर के शोर-शराबे में चुप होकर सब कह जाती.
त्याग तपस्या घर से अपने साधिका बन जाती.
लगे भूख बच्चे को मां सब्जी-रोटी बन जाती.
धूप लगे जो बचे को मां छांव सुहानी हो जाती.
जीवन में ही समग्र चेतन परमेश्वर बन जाती है.
मां-सा कहीं न मिलता, तभी तो ईश्वर कहलाती.

8 comments:

  1. बहुत सुंदर। माँ की खुबसूरत परिभाषा।

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  2. जीवन में ही समग्र चेतन परमेश्वर बन जाती है.
    मां-सा कहीं न मिलता, तभी तो ईश्वर कहलाती.
    " माँ से बढ़कर कुछ भी नहीं दुनिया. में.......माँ की सुंदर आक्रति को उजागर करते ये शब्द अनयास ही मन को छु गये.."

    Regards

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  3. मां-सा कहीं न मिलता, तभी तो ईश्वर कहलाती.

    -सत्य वचन!!!

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  4. बिलकुल सही कहा ...मैं तो माँ में ईश्वर को पता हूँ

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  5. बहुत सुंदर लिखा .. सच्‍चई ही बयां कर दी।

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  6. जीवन में ही समग्र चेतन परमेश्वर बन जाती है.
    मां-सा कहीं न मिलता, तभी तो ईश्वर कहलाती.

    बहुत सही सुन्दर

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  7. Maa ka naam sunte hi barbas aankh bhar aati hai..
    Kya kahun.. Maa sach mein bahut yaad aati hai..

    Haan, Sach hai, Maa ke roop anek, baccho ko jaisa bhi lubhaaye, Maa bas wohi ban jaaye..

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